आज़म खान की रिहाई की पूरी कहानी: गिरफ्तारी से रिहाई तक का सफर
उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज़म खान की रिहाई एक ऐसा बड़ा विषय बन गई है जिसने राज्य की सियासत को नई दिशा दी है। रामपुर के इस वरिष्ठ नेता को समाजवादी पार्टी का कद्दावर चेहरा माना जाता है। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कई बार विधायक, मंत्री और सांसद के रूप में काम किया। उनकी छवि एक ओर विकास कार्यों से जुड़ी रही तो दूसरी ओर कई कानूनी विवादों के कारण वे लगातार सुर्खियों में रहे। सितंबर 2025 में लगभग तेईस महीने जेल में बिताने के बाद आज़म खान की रिहाई ने फिर से राजनीतिक हलचल पैदा कर दी।

प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक सफर
मोहम्मद आज़म खान ने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा और समाजवादी विचारधारा को अपनाया। वे समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे और रामपुर से कई बार विधायक चुने गए। राज्य सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहते हुए उन्होंने शिक्षा, अल्पसंख्यक मामलों और शहरी विकास जैसे विभाग संभाले। उन्होंने रामपुर में मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना की जिसे लेकर उन्हें प्रशंसा भी मिली और विवाद भी। लेकिन अब चर्चा का सबसे बड़ा विषय आज़म खान की रिहाई बन चुका है।
विवादों की शुरुआत और दर्ज मुकदमे
समय के साथ आज़म खान पर कई गंभीर आरोप लगे। उन पर जमीन कब्जा करने, सरकारी संपत्ति हड़पने, फर्जी दस्तावेज तैयार करने और चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण देने जैसे मामले दर्ज हुए। पुलिस और प्रशासन ने अलग अलग समय पर जांच की और मुकदमे दायर किए। कुल मिलाकर उन पर सत्तर से अधिक केस दर्ज हुए जिनमें कई अब भी अदालतों में विचाराधीन हैं। इन मुकदमों के कारण ही उनकी गिरफ्तारी हुई और बाद में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आज़म खान की रिहाई संभव हो सकी।
जमीन कब्जा विवाद
सबसे चर्चित मामला रामपुर में किसानों और सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे का रहा। शिकायतों के आधार पर कई एफआईआर दर्ज हुईं। अदालत में इन मामलों की सुनवाई लंबे समय तक चली और प्रशासन ने कई बार जमीन की माप कराई। विपक्षी दलों ने इसे जनता की जमीन हड़पने का मामला बताया जबकि समाजवादी पार्टी ने इसे राजनीतिक साजिश कहा। इस विवाद का असर उनकी गिरफ्तारी और आखिरकार आज़म खान की रिहाई दोनों पर पड़ा।
फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामला
उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म के जन्म प्रमाण पत्र को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ। आरोप था कि दो अलग अलग प्रमाण पत्र बनवाकर चुनावी प्रक्रिया में लाभ लेने की कोशिश की गई। अदालत ने इस मामले में आज़म खान और उनके परिवार को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। इसी फैसले के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता भी रद्द कर दी गई थी। इन सबके बीच भी समर्थक लगातार आज़म खान की रिहाई की मांग करते रहे।
भड़काऊ भाषण और अन्य मामले
2022 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए एक भाषण को अदालत ने भड़काऊ मानते हुए सजा सुनाई। यह मामला भी उनकी मुश्किलें बढ़ाने वाला साबित हुआ और उनकी राजनीतिक गतिविधियां सीमित होती चली गईं। मगर अंततः कानूनी लड़ाई में मिली जीत ने आज़म खान की रिहाई का रास्ता खोला।
गिरफ्तारी और कैद का समय
फरवरी 2020 से शुरू हुई गिरफ्तारियों की श्रृंखला और बाद की अदालत कार्यवाहियों के चलते अक्टूबर 2023 में आज़म खान को सीतापुर जेल भेजा गया। वहां उन्होंने लगभग तेईस महीने बिताए। इस दौरान उनकी सेहत को लेकर कई खबरें सामने आईं। परिवार और पार्टी ने बार बार कहा कि यह सब राजनीति से प्रेरित कार्रवाई है लेकिन अदालतों में कानूनी प्रक्रिया जारी रही। कई मामलों में उन्हें जमानत मिली जबकि कुछ में सजा बरकरार रही। लंबी कैद के बाद आज़म खान की रिहाई ने उनके समर्थकों को राहत दी।
रिहाई की प्रक्रिया
सितंबर 2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में उन्हें जमानत दी। अदालत का आदेश आने के बाद बेल बांड से संबंधित औपचारिकताओं में थोड़ी देर लगी लेकिन आखिरकार सभी कागजी प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें सीतापुर जेल से रिहा कर दिया गया। उनकी आज़म खान की रिहाई की खबर फैलते ही रामपुर और आसपास के इलाकों में समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। जेल के बाहर बड़ी संख्या में लोग उन्हें स्वागत करने पहुंचे और नारेबाजी की।
रिहाई के बाद का राजनीतिक माहौल
आज़म खान की रिहाई के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई चर्चाएं शुरू हो गईं। समाजवादी पार्टी के भीतर उन्हें मुस्लिम राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है। लंबे समय तक जेल में रहने के कारण उनकी सक्रिय राजनीति रुक गई थी। अब सवाल है कि क्या वे पहले की तरह सक्रिय भूमिका निभा पाएंगे या फिर स्वास्थ्य और कानूनी मामलों के चलते सीमित रहेंगे। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि वे पार्टी में अपनी जगह मजबूत करने की कोशिश करेंगे जबकि कुछ का कहना है कि वे अन्य दलों से भी तालमेल कर सकते हैं।
समर्थकों की उम्मीदें और भविष्य
रामपुर और आसपास के क्षेत्रों में आज़म खान का अभी भी मजबूत जनाधार है। समर्थक उन्हें अपना नेता और मसीहा मानते हैं। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आज़म खान की रिहाई के बाद वे जल्द ही राजनीति में सक्रिय होंगे और अपनी पुरानी ताकत दिखाएंगे। हालांकि कई मुकदमे अभी भी अदालतों में लंबित हैं इसलिए उनकी राजनीतिक राह आसान नहीं कही जा सकती।
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निष्कर्ष
आज़म खान की रिहाई की कहानी केवल एक नेता की व्यक्तिगत लड़ाई नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति का आईना भी है। सत्ता, विपक्ष और कानून तीनों ने इस कहानी में अपना किरदार निभाया। तेईस महीने की लंबी कैद के बाद उनकी रिहाई से एक नया राजनीतिक अध्याय शुरू हुआ है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे समाजवादी पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत करते हैं या फिर नई राह चुनते हैं। यह लेख पूरी तरह तथ्य आधारित है और इसमें दी गई जानकारियां सार्वजनिक रिकॉर्ड और समाचार रिपोर्टों पर आधारित हैं।
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