बदलाव की किरण: सबादा ग्राम सभा को मिल रहा है जुझारू नेतृत्व
भावी प्रधान पद के उम्मीदवार मंसूर खान बने गांव की नई उम्मीद
ग्राम पोस्ट सबादा, विकास खंड जसपुरा, थाना पैलानी, तहसील पैलानी, जनपद बांदा (उत्तर प्रदेश) – ग्राम सभा सबादा इन दिनों बदलाव की दहलीज़ पर खड़ी है। लंबे समय से रुके विकास कार्यों, टूटी सड़कों, अधूरी नालियों और ठप पड़े सरकारी योजनाओं ने गांव की तस्वीर धुंधली कर दी थी। पिछले पंद्रह वर्षों में जब उम्मीदें टूट चुकी थीं, तब गांव के नवयुवक मंसूर खान (पुत्र मकसूद खान साहब) सामने आए। उन्हें लोग कर्मठ, जुझारू और ईमानदार नेतृत्व की बदलाव की किरण मान रहे हैं।

नई पीढ़ी की आवाज़ मंसूर खान
जब हर ओर निराशा छाई थी, तब मंसूर खान ने अपने निजी खर्च से गांव में सफाई अभियान शुरू किया। नालियों की सफाई, जंगली पेड़ों की कटाई और सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता ने यह दिखा दिया कि अगर इच्छाशक्ति हो तो बदलाव नामुमकिन नहीं। ग्रामीण कहते हैं कि यह सफाई सिर्फ गंदगी हटाने का काम नहीं था, बल्कि यह सबादा के लिए एक बदलाव की किरण थी जिसने सबको एकजुट कर दिया।
घर से ग्राम सभा तक विकास की शुरुआत
मंसूर खान ने बदलाव की शुरुआत अपने घर और आँगन से की। जब लोगों ने देखा कि एक परिवार से शुरू हुई स्वच्छता आज पूरी ग्राम सभा को छू रही है, तो यह संदेश और गहरा हो गया कि असली सुधार खुद से शुरू होता है। यही सोच सबादा में बदलाव की किरण बन गई है।
शायरी की जुबान में सबादा की कहानी
“हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।”
ग्रामीण मानते हैं कि यह शेर सबादा पर बिल्कुल सटीक बैठता है, क्योंकि मंसूर खान जैसा कर्मठ और ईमानदार इंसान बहुत मुश्किल से पैदा होता है। लोग उन्हें उस बदलाव की किरण के रूप में देखते हैं जो अंधकार को रोशनी में बदल सकती है।
ग्रामीणों की उम्मीदें बदलाव की पुकार
गांव की असल तस्वीर आज भी कई चुनौतियों से घिरी है। किसान बेहतर सिंचाई चाहते हैं, महिलाएँ रोजगार और सुरक्षा की तलाश में हैं, युवा शिक्षा और खेल सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं और बुजुर्गों को स्वास्थ्य सेवाओं की कमी सालों से खल रही है। ग्रामीणों का कहना है कि अब उन्हें केवल वादों की नहीं बल्कि असल विकास की जरूरत है। यही वजह है कि वे मंसूर खान को बदलाव की किरण मानते हुए उनके साथ खड़े हैं।
मंसूर खान का विज़न सेवा, न कि सत्ता
“गांव हमारा परिवार है। सफाई हो, शिक्षा हो या विकास—हर क्षेत्र में काम करना मेरी प्राथमिकता होगी। प्रधान पद मेरे लिए सत्ता नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम है।”
मंसूर खान का कहना है कि वह राजनीति में सत्ता के लिए नहीं, बल्कि सेवा के लिए आए हैं। उनका सपना है कि सबादा ग्राम सभा सिर्फ नक्शे पर मौजूद नाम न रहे, बल्कि एक आदर्श गांव बने जिसकी चर्चा चारों ओर हो। उनके विज़न में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और स्वच्छता जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- स्वच्छ और हरे-भरे सबादा का निर्माण
- विद्यालयों में बेहतर सुविधाएँ और डिजिटल शिक्षा
- युवाओं के लिए ट्रेनिंग और खेल गतिविधियाँ
- महिलाओं के लिए स्व-सहायता समूह और रोजगार के अवसर
- बुजुर्गों के लिए नियमित स्वास्थ्य शिविर
- सरकारी योजनाओं की पारदर्शी पहुँच
यह विज़न न सिर्फ कागज़ों में, बल्कि ज़मीनी हकीकत में उतारने की कोशिश है। यही वास्तविक बदलाव की किरण है।
चुनौतियाँ भी कम नहीं
गांव का विकास आसान नहीं है। पिछले 15 वर्षों से रुके हुए कामों को फिर से शुरू करना बड़ी चुनौती होगी। भ्रष्टाचार, संसाधनों की कमी और योजनाओं के गलत इस्तेमाल से लड़ना भी एक कठिन राह है। लेकिन ग्रामीण मानते हैं कि मंसूर खान का जुझारू स्वभाव और पारदर्शी सोच इन सभी मुश्किलों को पार कर लेगी। उनका मानना है कि जब गांव एकजुट होता है तो असंभव भी संभव बन जाता है, और यही असली बदलाव की किरण है।
युवाओं में उत्साह बदलाव की नई राजनीति
सबादा के युवा खुलकर कहते हैं कि अब केवल भाषण और वादों से काम नहीं चलेगा। “मंसूर भाई खुद कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। यही असली नेता है।” युवाओं का विश्वास है कि खेल मैदान, डिजिटल शिक्षा और रोजगार की योजनाएँ गांव तक जरूर पहुँचेंगी। युवाओं का यह जोश और भागीदारी ही उस बदलाव की किरण का हिस्सा है जो सबादा को एक नए युग की ओर ले जाएगी।
महिलाओं की भागीदारी आधा गांव, पूरा बदलाव
महिलाएँ मानती हैं कि अगर उन्हें सही अवसर मिलें तो वे गांव की तस्वीर बदल सकती हैं। मंसूर खान का वादा है कि महिलाओं के लिए स्व-सहायता समूह बनाए जाएंगे और उन्हें छोटे-छोटे रोजगार से जोड़ा जाएगा। इससे न केवल आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ेगी बल्कि परिवार और समाज दोनों सशक्त होंगे। महिलाओं का यह विश्वास और उनकी सक्रियता गांव की असली बदलाव की किरण है।
अंतिम संदेश सबादा का नया सवेरा
आज सबादा ग्राम सभा जिस मोड़ पर खड़ी है, वहां से यह तय है कि बदलाव केवल शब्दों से नहीं बल्कि कर्मों से आएगा। मंसूर खान ने यह साबित किया है कि अगर इरादा साफ हो तो विकास मुश्किल नहीं। ग्रामीणों का एक सुर में कहना है कि “बदलाव की किरण” अब सबादा में चमक रही है और यह रोशनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी रास्ता दिखाएगी।
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यह समाचार “UP की आवाज – सच के साथ सबके साथ पर प्रकाशित किया गया है।
सबादा बांदा



यह लेख बहुत प्रेरक और आशा जगाने वाला है। इसमें जिस तरह बदलाव की किरण और नई सोच को शब्दों में पिरोया गया है, वह सचमुच सराहनीय है। 🙏✨
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