कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय की गूंज
भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहाँ सत्ता तक पहुँचने का रास्ता जनता के दिल से होकर गुजरता है। इसी जनपथ पर दो ऐसे महान नेता उभरे, जिन्होंने राजनीति को सिर्फ सत्ता पाने का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया। ये दो नाम हैं बहुजन नायक कांशीराम और धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव। दोनों अलग पृष्ठभूमि से आए, पर दोनों का उद्देश्य एक था भारत के दलितों, पिछड़ों और वंचित वर्गों को सम्मान, शिक्षा और राजनीतिक अधिकार दिलाना। यही कारण है कि कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल आज भी भारतीय राजनीति के मूल में बसती है।
कांशीराम बहुजन चेतना के निर्माता और कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल का पहला अध्याय
कांशीराम जी का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर जिले के चक रामदास गाँव में हुआ। वे एक मध्यमवर्गीय रामदासी सिख परिवार से थे। बचपन से ही उन्होंने मेहनत और आत्मसम्मान को अपना मार्ग बनाया। उन्होंने विज्ञान विषय से स्नातक किया और फिर सरकारी नौकरी में आए। वहीं उन्होंने पहली बार जातिगत भेदभाव की सच्चाई को देखा, जिसने उनके भीतर विद्रोह की चिंगारी जलाई।
उन्होंने महसूस किया कि जब तक दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को संगठित नहीं किया जाएगा, तब तक वे हमेशा सत्ता से दूर रहेंगे। 1978 में उन्होंने BAMCEF (Backward and Minority Communities Employees Federation) का गठन किया, जिसका उद्देश्य शिक्षित कर्मचारियों को सामाजिक जागरूकता के लिए जोड़ना था। इसके बाद 1981 में DS-4 (Dalit Shoshit Samaj Sangharsh Samiti) और 1984 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की।

कांशीराम का नारा जो जमीन पर हक मांगेगा, वही राज करेगा भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी था। उन्होंने एक नया राजनीतिक समीकरण खड़ा किया बहुजन बनाम मनुवाद। उनकी पुस्तक ‘The Chamcha Age’ ने दलित राजनीति को वैचारिक आधार दिया।
उन्होंने बहुजन समाज को यह आत्मविश्वास दिया कि राजनीति सिर्फ ऊँची जातियों का अधिकार नहीं, बल्कि हर शोषित का अधिकार है। कांशीराम ने कहा था हम राज करने के लिए नहीं आए, बल्कि व्यवस्था बदलने के लिए आए हैं। यही विचार कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल को दिशा देता है।
मुलायम सिंह यादव किसान पुत्र से धरती पुत्र तक और सामाजिक न्याय की यात्रा
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के सैफई गाँव में 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव समाज के पिछड़े तबके से थे। उनका जीवन संघर्ष और सादगी का प्रतीक रहा। वे प्रारंभिक दिनों में शिक्षक रहे और बाद में डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रभावित होकर राजनीति में कदम रखा।
उन्होंने समाजवादी पार्टी (SP) के माध्यम से गरीब, किसान, मजदूर और पिछड़े वर्गों की आवाज़ को मजबूत किया। 1967 में पहली बार विधायक बने और आगे चलकर 1989, 1993 और 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1996-1998 के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री भी रहे।
मुलायम सिंह यादव ने हमेशा कहा जब तक खेत में हल चलाने वाला खुश नहीं, तब तक देश मजबूत नहीं हो सकता। उन्होंने शिक्षा, रोजगार, किसान और युवाओं के हितों को सर्वोपरि रखा। उनकी सादगी और लोगों से जुड़ाव ने उन्हें “धरती पुत्र” की उपाधि दिलाई।
उन्होंने राम मनोहर लोहिया की विचारधारा संसाधनों का समान वितरण को अपने शासन में लागू करने की कोशिश की। मुलायम ने राजनीति को वर्ग संघर्ष की बजाय जन संघर्ष बनाया जहाँ हर किसान, मजदूर और नौजवान को आवाज़ मिल सके। मुलायम की यह सोच कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल को और मजबूती देती है।
1993 का ऐतिहासिक गठबंधन जब मिले कांशीराम और मुलायम
भारतीय राजनीति में 1993 का वर्ष इतिहास में दर्ज है, जब कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर BSP-SP गठबंधन बनाया। उस समय बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था।
यह गठबंधन सिर्फ राजनीति नहीं बल्कि समाज के दो बड़े तबकों दलितों और पिछड़ों के एकजुट होने की घोषणा थी। इस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक न्याय को केंद्र में ला दिया। यह प्रयोग इतना सफल रहा कि को सत्ता से बाहर होना पड़ा।
हालाँकि यह गठबंधन ज्यादा समय नहीं चला, लेकिन इसने दिखा दिया कि अगर वंचित समाज एकजुट हो जाए, तो सत्ता के समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं। इस गठबंधन ने आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश दिया कि सत्ता जनता की है, किसी जाति या वर्ग की नहीं। यह ऐतिहासिक गठबंधन वास्तव में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल का प्रतीक बना।
दोनों नेताओं का भारतीय राजनीति पर स्थायी प्रभाव
कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने भारतीय राजनीति को जमीनी स्तर पर बदल दिया। उन्होंने संसद और विधानसभाओं में उन वर्गों की उपस्थिति दर्ज कराई जिन्हें पहले कभी महत्व नहीं दिया गया था। दोनों ने सामाजिक न्याय, आरक्षण और समान अवसर की अवधारणा को राजनीतिक विमर्श का केंद्र बनाया।
जहाँ कांशीराम ने दलित समाज को चेतना दी, वहीं मुलायम सिंह ने पिछड़े वर्गों को राजनीतिक शक्ति दी। दोनों नेताओं की विचारधाराएँ भले ही अलग रहीं BSP की राजनीति पहचान और प्रतिनिधित्व पर केंद्रित थी, जबकि SP की राजनीति वर्ग और समाज पर लेकिन दोनों का लक्ष्य एक ही था समानता और सम्मान। यही दोनों विचार कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल को साकार करते हैं।
इन दोनों के प्रयासों से उत्तर प्रदेश की राजनीति में पहली बार आम जनता को लगा कि उनका भी शासन में हिस्सा है। उन्होंने कांग्रेस जैसी पारंपरिक राजनीतिक ताकतों को चुनौती दी और मंडल युग की नींव रखी।
कांशीराम और मुलायम की विरासत और सामाजिक न्याय की प्रेरणा
आज भी दोनों नेताओं की विरासत भारतीय राजनीति में जीवित है। कांशीराम जी के सिद्धांतों पर बहुजन समाज पार्टी चल रही है, जबकि मुलायम सिंह यादव के विचारों को समाजवादी पार्टी आगे बढ़ा रही है। दोनों के अनुयायी आज भी यह मानते हैं कि भारत में तब तक सच्चा लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सकता जब तक समाज के निचले तबके को बराबरी का दर्जा नहीं मिलता।
कांशीराम का सपना था बहुजन राजनैतिक चेतना के माध्यम से शासन में बहुसंख्यकों की भागीदारी। मुलायम का संदेश था गरीब का बेटा भी देश चला सकता है, यही लोकतंत्र की असली जीत है। दोनों विचार आज भी युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा हैं। इसीलिए कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल आज भी प्रासंगिक हैं।
निष्कर्ष दो नाम एक क्रांति
कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सिर्फ नेता नहीं थे, वे आंदोलन थे। एक ने दलितों को आवाज़ दी, दूसरे ने किसानों और पिछड़ों को सम्मान दिया। दोनों ने यह साबित किया कि राजनीति तभी सार्थक है जब उसका उद्देश्य जनता का उत्थान हो। यही भाव कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल के केंद्र में है।
इन दोनों महान नेताओं की सोच और संघर्ष ने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में नई चेतना पैदा की। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे, जब उन्होंने समाज के सबसे निचले पायदान से उठकर सत्ता के केंद्र तक अपनी बात पहुँचाई।
भारत की राजनीति में इन दोनों महानायकों का योगदान अमिट है। कांशीराम आत्मसम्मान की आवाज़ और मुलायम सिंह यादव जनता की उम्मीद।
लेखक: रियाजुद्दीन जहीर खान
ग्राम: सबादा, जिला बाँदा
स्रोत: www.upkiawaz.com
श्रेणी: भारतीय राजनीति सामाजिक न्याय कांशीराम और मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की दो राहें एक मंजिल
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